प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साक़ी बनकर साक़ी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला;
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कबका वार चुका
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।
– डॉ. हरिवंशराय बच्चन
તરસ તને તો જગત તપાવી અઢળક હું ગાળીશ મદિરા,
થઈ સાકી બસ એક ચરણ ૫૨ નાચીશ હું લઈને પ્યાલા;
જીવનની મધુરપ તારા ૫૨ યુગયુગથી કુરબાન કરી
આજ કરી દઉં હું ન્યોછાવ૨ તુજ ૫૨ જગની મધુશાલા.
શબ્દો : સંત કબીર
સ્વર : આબિદા પરવીન
આલ્બમ : “કબીર by આબિદા”
રજૂઆત : ગુલઝાર
Commentary by Gulzar…
नशे इकहरे ही अच्छे होते हैं,
सब कह्ते हैं दोहरे नशे अच्छे नहीं
एक नशे पर दूसरा नशा न चढाओ
पर क्या है कि, एक कबीर उस पर आबिदा परवीन
सुर सरूर हो जाते हैं,
और सरूर देह कि मट्टी पार करके रूह मे समा जाता है
सोइ मेरा एक तो, और न दूजा कोये ।
जो साहिब दूजा कहे, दूजा कुल का होये ॥
कबीर तो दो कहने पे नाराज़ हो गये,
वो दूजा कुल का होये !
Abida starts singing…
साहिब मेरा एक है, दूजा कहा न जाय ।
दूजा साहिब जो कहूं, साहिब खडा रसाय ॥
माली आवत देख के, कलियां करें पुकार ।
फूल फूल चुन लिये, काल हमारी बार ॥
चाह गयी चिन्ता मिटी, मनवा बेपरवाह ।
जिनको कछु न चहिये, वो ही शाहनशाह ॥
एक प्रीत सूं जो मिले, तको मिलिये धाय ।
अन्तर राखे जो मिले, तासे मिले बलाय ॥
सब धरती कागद करूं, लेखन सब बनराय ।
सात समुंद्र कि मस करूं, गुरु गुन लिखा न जाय ॥
अब गुरु दिल मे देखया, गावण को कछु नाहि ।
कबीरा जब हम गांव के, तब जाना गुरु नाहि ॥
मैं लागा उस एक से, एक भया सब माहि ।
सब मेरा मैं सबन का, तेहा दूसरा नाहि ॥
जा मरने से जग डरे, मेरे मन आनन्द ।
तब मरहू कब पाहूं, पूरण परमानन्द ॥
सब बन तो चन्दन नहीं, सूर्य है का दल नाहि ।
सब समुंद्र मोती नहीं, यूं सौ भूं जग माहि ॥
जब हम जग में पग धरयो, सब हसें हम रोये ।
कबीरा अब ऐसी कर चलो, पाछे हंसीं न होये ॥
औ-गुण किये तो बहु किये, करत न मानी हार ।
भांवें बन्दा बख्शे, भांवें गर्दन माहि ॥
साधु भूख भांव का, धन का भूखा नाहि ।
धन का भूखा जो फिरे, सो तो साधू नाहि ॥
कबीरा ते नर अन्ध हैं, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥
करता था तो क्यों रहा, अब काहे पछताय ।
बोवे पेड बबूल का, आम कहां से खाय ॥
साहिब सूं सब होत है, बन्दे ते कछु नाहि ।
राइ से परबत करे, परबत राइ मांहि ॥
ज्यूं तिल मांही तेल है, ज्यूं चकमक में आग ।
तेरा सांई तुझमें बसे, जाग सके तो जाग ॥
बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे
[ baazeechaa = play/sport, atfaal = children ]
इक खेल है औरन्ग-ए-सुलेमाँ मेरे नज़दीक
इक बात है एजाज़-ए-मसीहा मेरे आगे
[ auraNg = throne, ‘eijaz = miracle ]
जुज़ नाम नहीं सूरत-ए-आलम मुझे मन्ज़ूर
जुज़ वहम नहीं हस्ती-ए-अशिया मेरे आगे
[ juz = other than, aalam = world, hastee = existence, ashiya = things/items ]
होता है निहाँ गर्द में सेहरा मेरे होते
घिसता है जबीं ख़ाक पे दरिया मेरे आगे
[ nihaaN = hidden, gard = dust, sehara = desert, jabeeN = forehead ]
मत पूछ के क्या हाल है मेरा तेरे पीछे
तू देख के क्या रंग है तेरा मेरे आगे
सच कहते हो ख़ुदबीन-ओ-ख़ुदआरा हूँ न क्योँ हूँ
बैठा है बुत-ए-आईना सीमा मेरे आगे
[ KHudbeen = proud/arrogant, KHud_aaraa = self adorer, but = beloved, aainaa_seemaa = like the face of a mirror ]
फिर देखिये अन्दाज़-ए-गुलअफ़्शानी-ए-गुफ़्तार
रख दे कोई पैमाना-ए-सहबा मेरे आगे
[ gul_afshaanee = to scatter flowers, guftaar = speech/discourse, sahaba = wine, esp. red wine ]
नफ़रत के गुमाँ गुज़रे है मैं रश्क से गुज़रा
क्योँ कर कहूँ लो नाम ना उसका मेरे आगे
[ gumaaN = doubt, rashk = envy ]
इमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र
काबा मेरे पीछे है कलीसा मेरे आगे
[ kufr = impiety, kaleesa = church/cathedral ]
आशिक़ हूँ पे माशूक़फ़रेबी है मेर काम
मजनूँ को बुरा कहती है लैला मेरे आगे
[ farebee = a fraud/cheat ]
ख़ुश होते हैं पर वस्ल में यूँ मर नहीं जाते
आई शब-ए-हिजराँ की तमन्ना मेरे आगे
[ hijr = separation ]
है मौजज़न इक क़ुल्ज़ुम-ए-ख़ूँ काश! यही हो
आता है अभी देखिये क्या-क्या मेरे आगे
[ mauj_zan = exciting, qulzum = sea, KHooN = blood ]
गो हाथ में जुंबिश नहीं आँखों में तो दम है
रहने दो अभी साग़रो-मीना मेरे आगे
[ jumbish = movement/vibration, saaGHar-o-meena = goblet ]
हम-पेशा ओ’ हम-मशरब ओ’ हम-राज़ है मेरा
‘ग़ालिब’ को बुरा क्यों कहो, अच्छा मेरे आगे
[ ham_pesha = of the same profession, ham_masharb = of the same habits/a fellow boozer, ham_raaz = confidant ]
ગુજરાતી તખ્તાના જાણીતા દિગ્દર્શક અને અભિનેતા – વિરલ રાચ્છ..! થોડા સમય પહેલા જ્યારે કાજલબેન અને વિરલભાઇને મળવાનું થયું – ત્યારે વિરલભાઇએ આ નઝમ સંભળાવી અને તરત જ ગમી ગઇ..! અને સાથે જ આપ સૌ સાથે વહેંચવાની ઇચ્છા થઇ આવી.. એટલે વિરલભાઇ પાસે એનું રેકોર્ડિંગ મંગાવ્યું..! આશા છે આ નઝમ આપ સૌને પણ એટલી જ ગમશે!
પઠન – વિરલ રાચ્છ
कुछ लम्हे ऐसे होते है
वो साथ हमेशा होते है
जब मंज़र चुप हो जाते है
वो दिल से बाते करते है
मसलन वो छोटा लम्हा
वो नानी का बुढ़ा कमरा
कमरे में बिखरी सी हुई
वो परियां और शैतान की बातें
रजाई में सुनते कट थी
शर्दी की वो लम्बे रातें
आज में उसी चार पाय पे तनहा हो कर बैठा हूँ
रजाइ के ज़रिये से जब उन लम्हों को सहलाता हूँ
वो सारे लम्हे एक साथ इस कमरे में आ जाते है
राजा ,रानी ,भालू ,शेर अपने साथ वो लाते हे
आज भी जब शैतान के डर से राज कुमारी रोती है
कमरे में बैठे बैठे मेरी आँखों को भिगोती है
ये लम्हे कभी ना मरते है ,
ये तो राजकुमार से होते है
हमेशा जिंदा रहते है
जब मंज़र चुप हो जाते है
वो दिल से बाते करते है
कुछ लम्हे ऐसे होते है….!
याद अभी तक है मुजको वो भीगा भीगा सा लम्हा
रात को छत पे आना उसका और बालो को बिखराती हवा
हवा और दुपट्टे के बिच में सरगोशी सी होती थी
वो कुछ भी ना कहते थी और लाखो बाते होती थी
वो दिल की बातो का होठो पे आते आते रुक जाना
नजरो का मिलते ही फिर शर्मा के उनका झुक जाना
कसम है उन नजारों की लम्हों को फिर से जीना है
वक्त के ज़रिये से उखड़े रिश्ते को फिर से सीना है
लेकिन इन बेहते लम्हों को हाथो में कैसे कैद करू
जैसे में मुट्ठी बंध करू वे बन कर रेत सरकते है
वो साथ हमेशा रहते है
जब मंज़र चुप हो जाते है
वो दिल से बाते करते है
कुछ लम्हे ऐसे होते है….!
इन छोटे मोटे लम्हों में कई फ़साने होते है
कहीं ख़ुशी से हसते है तो कभी वो गम में रोते है
ये लम्हे अजीब होते है जाने कहाँ से आते है ?
वक्त के पाबन्द होते है आते ही चले जाते है
लेकिन चाँद लम्हे होते है जो दिल में घर कर जाते है
गर्दिशो के दौर में हम उन लम्हों को जी लेते है
जाम बना कर अक्सर हम उन लम्हों को पी लेते है
ये लम्हे ही तो होते है हम सबको ज़िंदा रखते है
वो साथ हमेशा रहते है
जब मंज़र चुप हो जाते हे
वो दिल से बाते करते है
कुछ लम्हे ऐसे होते है …..!
જહાંઆરા થી લઇને વીરઝારા જેવા – હિન્દી ફિલ્મસંગીતના રસિયાઓને કદી ન ભૂલાય એવા કેટલાય timeless classics ગણાય એવા સ્વરાંકનો આપનાર – સંગીતકાર શ્રી મદન મોહનને આજે એમના જન્મદિવસે શ્રધ્ધાંજલી સાથે માણીએ આ એક એમનું ઘણું જ જાણીતું ગીત..! સાંભળતા પહેલા એકવાર શાંત ચિત્તે આ ગીતના શબ્દો વાંચી જજો… !
બે દિવસ પહેલા જ – So You Think You Can Dance – માં Coming Home એવું એક ગીત સાંભળ્યું – એના પરથી પણ હિન્દી ફિલ્મોના યાદગાર યુધ્ધભૂમિ ગીતોમાંનું એક આ યાદ આવી જાય..! સંગીતકાર મદન મોહન વિષે વધુ માહીતી એમના વિષેના આ વિકિપાના પર – અને એમની વેબસાઇટપર પણ મળી રહેશે.
Film Name: Haqeeqat (1964)
Singer(s): Mohd. Rafi, Talat Mehmood, Manna Dey & Bhupendra
Lyrics: Kaifi Azmi
होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा
ज़हर चुपके-से दावा जान के खाया होगा
दिल ने ऐसे भी कुछ अफ़साने सुनाए होंगे
अश्क़ आँखों ने पिए, और न बहाए होंगे
बंद कमरे में, जो ख़त मेरे जलाए होंगे
एक-इक हर्फ़ जबीं पर उभर आया होगा
उसने घबरा के नज़र लाख बचाई होगी
दिल की लुटती हुई दुनिया नज़र आई होगी
मेज़ से जब मेरी तस्वीर हटाई होगी
हर तरफ मुझको तड़पता हुआ पाया होगा
छेड़ की बात से अरमां मचल आये होंगे
ग़म दिखावे की हँसी में उबल आये होंगे
नाम पर मेरे जब आंसू निकल आए होंगे
सर न काँधे से सहेली के उठाया होगा
ज़ुल्फ़ जिद करके किसी ने जो बनाई होगी
और भी ग़म की घटा मुखड़े पे चाई होगी
बिजली नजरो ने कई दिन न गिराई होगी
रंग चेहरे पे कई रोज़ न आया होगा
होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा
ज़हर चुपके-से दावा जान के खाया होगा
– कैफ़ी आज़मी
તા.ક. : ફિલ્મ સંજોગનું આ ગીત – જેનું સંગીત પણ શ્રી મદન મોહનનું જ છે – એનું સારું રેકોર્ડિંગ મારી પાસે નથી એટલે આજે અહીં ઓડિયોમાં નથી મૂક્યું – પણ મને એ ગીત ખૂબ ખૂબ ખૂબ જ ગમે છે.. અને ગૂગલ કરતાં એનો વિડિયો મળી ગયો… એટલે એ પણ અહીં બોનસમાં મૂકી જ દઉં છું…
बदली से निकला है चाँद
परदेसी पिया, लौट के तू घर आजा, घर आजा..