Category Archives: સંત કબીર

સાધો, શબ્દસાધના કીજે -કબીરસાહેબ

સ્વર: અમર ભટ્ટ
સ્વરાંકન: અમર ભટ્ટ

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સાધો, શબ્દસાધના કીજે,
જેહિ શબ્દ તે પ્રગટ ભએ સબ શબ્દ સોઈ ગહિ લીજૈ.

શબ્દહિ ગુરુ શબ્દ સુનિ સિખ ભૈ સો બિરલા બૂઝૈ,
સાંઈ શિષ્ય ઔર ગુરુ મહામત જેઈ અંતરગત સૂઝૈ.

શબ્દૈ વેદ પુરાન કહત હૈ શબ્દૈ સબ ઠહરાવૈ,
શબ્દૈ સુરમુનિ સંત કહત હૈ શબ્દભેદ નહિ પાવે.

શબ્દૈ સુનિસુનિ ભેખ ધરત હૈ શબ્દૈ કહે અનુરાગી,
ષટદર્શન સબ શબ્દ કહત હૈ શબ્દ કહૈ બૈરાગી.

શબ્દૈ માયા જગ ઉતપાની શબ્દૈ કેર પસારા,
કહ કબીર જહં શબ્દ હોત હૈ તબન ભેદ હૈ ન્યારા.
-કબીરસાહેબ

साहिब मेरा एक है – संत कबीर

શબ્દો : સંત કબીર
સ્વર : આબિદા પરવીન
આલ્બમ : “કબીર by આબિદા”
રજૂઆત : ગુલઝાર
Commentary by Gulzar…

नशे इकहरे ही अच्छे होते हैं,
सब कह्ते हैं दोहरे नशे अच्छे नहीं
एक नशे पर दूसरा नशा न चढाओ
पर क्या है कि, एक कबीर उस पर आबिदा परवीन
सुर सरूर हो जाते हैं,
और सरूर देह कि मट्टी पार करके रूह मे समा जाता है

सोइ मेरा एक तो, और न दूजा कोये ।
जो साहिब दूजा कहे, दूजा कुल का होये ॥

कबीर तो दो कहने पे नाराज़ हो गये,
वो दूजा कुल का होये !

Abida starts singing…

साहिब मेरा एक है, दूजा कहा न जाय ।
दूजा साहिब जो कहूं, साहिब खडा रसाय ॥

माली आवत देख के, कलियां करें पुकार ।
फूल फूल चुन लिये, काल हमारी बार ॥

चाह गयी चिन्ता मिटी, मनवा बेपरवाह ।
जिनको कछु न चहिये, वो ही शाहनशाह ॥

एक प्रीत सूं जो मिले, तको मिलिये धाय ।
अन्तर राखे जो मिले, तासे मिले बलाय ॥

सब धरती कागद करूं, लेखन सब बनराय ।
सात समुंद्र कि मस करूं, गुरु गुन लिखा न जाय ॥

अब गुरु दिल मे देखया, गावण को कछु नाहि ।
कबीरा जब हम गांव के, तब जाना गुरु नाहि ॥

मैं लागा उस एक से, एक भया सब माहि ।
सब मेरा मैं सबन का, तेहा दूसरा नाहि ॥

जा मरने से जग डरे, मेरे मन आनन्द ।
तब मरहू कब पाहूं, पूरण परमानन्द ॥

सब बन तो चन्दन नहीं, सूर्य है का दल नाहि ।
सब समुंद्र मोती नहीं, यूं सौ भूं जग माहि ॥

जब हम जग में पग धरयो, सब हसें हम रोये ।
कबीरा अब ऐसी कर चलो, पाछे हंसीं न होये ॥

औ-गुण किये तो बहु किये, करत न मानी हार ।
भांवें बन्दा बख्शे, भांवें गर्दन माहि ॥

साधु भूख भांव का, धन का भूखा नाहि ।
धन का भूखा जो फिरे, सो तो साधू नाहि ॥

कबीरा ते नर अन्ध हैं, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥

करता था तो क्यों रहा, अब काहे पछताय ।
बोवे पेड बबूल का, आम कहां से खाय ॥

साहिब सूं सब होत है, बन्दे ते कछु नाहि ।
राइ से परबत करे, परबत राइ मांहि ॥

ज्यूं तिल मांही तेल है, ज्यूं चकमक में आग ।
तेरा सांई तुझमें बसे, जाग सके तो जाग ॥

– संत कबीर

(શબ્દો માટે આભાર : Dazed and Confused)

मन लागो मेरो यार फ़कीरी में ॥ – संत कबीर

ઘણા વખત પહેલા આબિદા પરવીનના સ્વરમાં કબીરજીના કેટલાક દુહા સાંભળ્યા હતા… એનુ શિર્ષક પણ ‘મન લાગો યાર ફકીરીમેં..’ એવું જ છે..! પણ એમાં ઘણા બધા દુહા એક સાથે હતા, જ્યારે અહીં પ્રસ્તુત ભજન અલગ છે..! આશા છે આપને આ પણ ગમશે…!

સ્વર – સંગીત આયોજન : આશિત દેસાઇ

આલ્બમ : ઢાઇ અક્ષર પ્રેમ કા

मन लागो मेरो यार फ़कीरी में ॥
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

जो सुख पाऊँ राम भजन में
सो सुख नाहिं अमीरी में
मन लागो मेरो यार फ़कीरी में ॥

भला बुरा सब का सुनी लीजे
कर गुजरान गरीबी में
मन लागो मेरो यार फ़कीरी में ॥

प्रेम नगर में रहनी हमारी
खलिबनी आई सबूरी में
मन लागो मेरो यार फ़कीरी में ॥

हाथमें कुंची बगल में सोता
चारो दिसी जागीरी में
मन लागो मेरो यार फ़कीरी में ॥

आखिर यह तन ख़ाक मिलेगा
कहाँ फिरत मग़रूरी में
मन लागो मेरो यार फ़कीरी में ॥

कहत कबीर सुनो भयी साधो
साहिब मिले सबूरी में
मन लागो मेरो यार फ़कीरी में ॥

मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे – संत कबीर

આજે ગુરુપૂર્ણિમાના દિવસે કબીરજીનું મને ખૂબ જ ગમતું પદ સાંભળીયે. સ્વર અને સ્વરાંકન પણ એવા સરસ છે કે વારંવાર સાંભળવાનું મન ચોક્કસ થાય.

मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे,
मैं तो तेरे पास में
ना तीरथ में , ना मूरत में
ना एकांत निवास में

ना मन्दिर में , ना मस्जिद में
ना काबे कैलास में
मैं तो तेरे पास में
बन्दे मैं तो तेरे पास में

ना मैं जप में , ना मैं तप में
ना में बरत उपवास में
ना मैं किरिया करम में
रहता नहीं जोग सन्यास में

नहीं प्राण में नहीं पिंड में
ना ब्रह्माण्ड अकास में
ना में प्रकुति प्रवर गुफा में
नहीं स्वसन की स्वांस में

खोजी होए तुरत मिल जाऊं
इक पल की तलास में
कहत कबीर सुनो भाई साधो
में तो हूँ विस्वास में

– संत कबीर
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(શબ્દો માટે આભાર : This ‘n That)

H मन लागो यार फकिरीमें.. – संत कबीर

શબ્દો : સંત કબીર
સ્વર : આબિદા પરવીન
આલ્બમ : “કબીર by આબિદા”
રજૂઆત : ગુલઝાર

Commentary by Gulzar…

रांझा रांझा करदी हुण मैं, आपे रांझा होई ।

सुफ़ियों का कलाम गाते गाते आबिदा परवीन खुद सूफ़ी हो गई ।
उनकी आवाज़ अब इबादत की आवाज़ लगती है ।
मौला को पुकारती हैं तो लगता है,
हाँ, इनकी आवाज जरूर तुझ तक पहुंचती होगी ।
वो सुनता होगा, सिरत सदाक़त की आवाज ।

माला कहे है काठ की, तू क्यूं फेरे मोहे ।
मन का मणका फ़ेर दे, सो तुरत मिला दूं तोहे ॥

आबिदा कबीर की मार्फ़त पुकारती हैं उसे,
हम आबिदा की मार्फ़त उसे बुला लेते हैं ।

AbidA starts singing…

मन लागो यार फ़कीरी में,

कबीर रेख सिन्दूर, उर काजर दिया न जाय ।
नैनन प्रीतम रम रहा, दूजा कहां समाय ॥

प्रीत जो लागी भुल गयि, पीठ गयि मन मांहि ।
रूम रूम पियु पियु कहे, मुख कि सिरधा नांहि ॥

मन लागो यार फ़कीरी में,
बुरा भला सबको सुन लीजो, कर गुजरान गरीबी में ।

सती बिचारी सत किया, काँटों सेज बिछाय ।
ले सूती पिया आपना, चहुं दिस अगन लगाय ॥

गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाय ।
बलिहारी गुरू आपणे, गोविन्द दियो बताय ॥

मेरा मुझ में कुछ नहीं, जो कुछ है सो तेरा ।
तेरा तुझ को सौंप दे, क्या लागे है मेरा ॥

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नांहि ।
जब अन्धियारा मिट गया, दीपक देखिया मांहि ॥

रूखा सूखा खाय के, ठन्डा पानी पियो ।
देख परायी चोपड़ी मत ललचावे जियो ॥

साधू कहावत कठिन है, लम्बा पेड़ खुजूर ।
चढे तो चाखे प्रेम रस, गिरे तो चकना-चूर ॥

मन लागो यार फ़कीरी में,
आखिर ये तन खाक़ मिलेगा, क्यूं फ़िरता मगरूरी में ॥

लिखा लिखी की है नहीं, देखा देखी बात ।
दुल्हा-दुल्हन मिल गये, फ़ीकी पड़ी बारात ॥

जब लग नाता जगत का, तब लग भक्ति न होय ।
नाता तोड़े हरि भजे, भगत कहावे सोय ॥

हद हद जाये हर कोइ, अन-हद जाये न कोय ।
हद अन-हद के बीच में, रहा कबीरा सोय ॥

माला कहे है काठ की तू क्यूं फेरे मोहे ।
मन का मणका फेर दे, सो तुरत मिला दूं तोहे ॥

जागन में सोतिन करे, साधन में लौ लाय ।
सूरत डार लागी रहे, तार टूट नहीं जाये ॥

पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूं पहाड़ ।
ताते या चाखी भली, पीस खाये संसार ॥

कबीरा सो धन संचिये, जो आगे को होई ।
सीस चढाये गांठड़ी, जात न देखा कोइ ॥

हरि से ते हरि-जन बड़े, समझ देख मन मांहि ।
कहे कबीर जब हरि दिखे, सो हरि हरि-जन मांहि ॥

मन लागो यार फ़कीरी में,
कहे कबीर सुनो भई साधू, साहिब मिले सुबूरी में ।

Thank you : Dazed and Confused

H गुरु बिन कौन बयावे बाट – संत कबीर

આજે ગુરુપૂર્ણિમાના દિવસે કબીરજીનું – ગુરુમહિમા દર્શાવતું એક પદ સાંભળીયે.

સ્વર : મનહર ઉધાસ
આલ્બમ : સુમિરન

kabir

गुरु बिन कौन बतावे वाट
बडा विकट यम घाट
भ्रांती की पहाडी, नदिया बिचमें
अहंकारकी नाड

जय राम सीया राम सीया राम सीया राम….
जय राम सीया राम सीया राम सीया राम….

काम क्रोध दो पर्बत __
लोभ चोर संघार
बडा विकट यम घाट

जय राम सीया राम सीया राम सीया राम….
जय राम सीया राम सीया राम सीया राम….

मद मत्सरका मेह बरसत
माया पवन बहे ___
बडा विकट यम घाट

जय राम सीया राम सीया राम सीया राम….
जय राम सीया राम सीया राम सीया राम….

कहे क्बीर सुनो भइ साधो
क्युं तरना यह घाट
बडा विकट यम घाट

जय राम सीया राम सीया राम सीया राम….
जय राम सीया राम सीया राम सीया राम….

H सोउं तो सपने मिलुं, जागुं तो मन मांही – संत कबीर

શબ્દો : સંત કબીર
સ્વર : આબિદા પરવીન
આલ્બમ : “કબીર by આબિદા”
રજૂઆત : ગુલઝાર

Commentary by Gulzar…

कबीर को पढते जाओ, परत खुलती जाती है,
आबिदा को सुनते रहो सुरत खुलती रहती है,
ध्यान लग जाता है, इबादत शुरू हो जाती है,
अपने आप आंखें बन्द हो जाती हैं,
कोइ उन्हें सामने बैठ के सुने,
आंखें खोलो तो बाहर नज़र आती हैं,
आंखें मूंदो तो अन्दर,

पीतम को पतियां लिखूं, जो कहूं होये बिदेस ।
तन में मन में नैन में, ताको कहा सन्देस ॥

Abida starts singing…

सोऊं तो सपने मिलूं, जागूं तो मन मांहि ।
लोचन रातें सब घडी, बिसरत कबहू न मांहि ॥

कबीरा सीप समुंद्र की, रते प्यास पियास ।
और बूंद को ना गिहे, स्वाति बूंद की आस ॥

नैनन अन्तर आओ तो, नैन झांक तोहे ल्यूं ।
ना मैं देखूं और को, ना तोहे देखन द्यूं ॥

जात न पूछो साधू की, पूछ लीजिये ग्यान ।
मोल करो तलवार का, पडी रहन दो म्यान ॥

हम तुमहरो सुमिरन करो, तुम मोहे चेतो नांहि ।
सुमिरन मन की प्रीत है, सो मन तुमही मांहि ॥

ज्यूं नैनन में पोतली, यूं मालिक़ घट मांहि ।
मूरख लोग न जाने, बाहर ढूढत जांहि ॥१९२॥

चलती चक्खी देख के, दिया कबीरा रोये ।
दो पट भीतर आईके, साबित गया न कोये ॥

क्या मुखहे बिनती करूं, लाज आवत है मोहे ।
तुम देखत औ-गुन करूं, कैसे भाऊं तोहे ॥

मरिये तो मर जाइये, छूट पड़े जग जार ।
ऐसे मरना तो मरे, दिन में सौ सौ बार ॥

सबद सबद सब कोइ कहे, सबद के हाथ न पांव ।
एक सबद औशुध करे, एक सबद किर घाव ॥

माला तो कर में फिरे, जीभ फिरे मुख मांहि ।
मनवा तो चहूं दिस फिरे, ये तो सुमिरन नांहि ॥

उठा बगोला प्रेम का, तिनका उड़ा आकास ।
तिनका तिनका से मिला, तिनका तिनके पास ॥

नैनन की कर कोठड़ी, पुतरी पलंग बिछाय ।
पलकों की चित डाल के, पी को लिया रिझाय ॥

हरि से तो जन हेत कर, कर हरि-जन से हेत ।
माल मिलत हरि देत है, हरि-जन हरि ही देत ॥

कबीरा संगत साधु की, जौं की भूसी खाय ।
खीर खांड भोजन मिले, साकत संग न जाये ॥

Thank you : Dazed and Confused